Last Updated in April, 2022
यह ब्लॉग राजा अग्रसेन और अग्रवाल समुदाय के इतिहास और उत्पत्ति के बारे में है।
----- अग्रवंश , अग्रोहा एवं महाराज अग्रसेन -----
वंश , वंशज , धरोहर ये उन चुनिंदा शब्दों में शुमार हैं जिनका संसार भर में गहरा वर्चस्व हैं खासकर भारत जैसे देशों में।
इस कोरोना महामारी के दिये हुए खाली समय में अपनी रुचि को तुष्ट करने के लिए अपने वंश और समाज पर थोड़ा अध्ययन किया और इसके इतिहास को समझने का प्रयास किया, वैसे तो इस विषय मे मुझे थोड़ा बहुत ज्ञान था कि हम महाराजा अग्रसेन के वंशज हैं और अग्रोहा हमारा वांशिक धाम है, लेकिन अधिक पढ़ने पर कई नए तथ्य (नए से तात्पर्य हैं जो मुझे नही मालूम थे, तथ्य तो पुराने ही हैं) पता चले तो सोचा कि इसको साझा किया जाए।
[ भाग 1 : प्रामणिकता ]
वैसे तो प्राचीन काल से ही अग्रवंश की कई कहानियां चलन में थी लेकिन कोई लिखित प्रमाण न थे जो अग्रवंश के इतिहास पर मोहर लगा सके।
संवत 1411 (अंग्रेजी कैलेंडर 1354) में, अग्रवाल कवि साधु ने लिखा हैं- "अगरवाल की मेरी जात, पुर आगरो महि उतपात" (अर्थात- "मेरी जाति अग्रवाल है, और मैं अग्रोहा शहर में अपनी जड़ें तलाशता हूं) ।
फिर 1850 में जन्मे बनारस के श्री भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने "अग्रवालों की उत्त्पति" नामक एक रचना कि और बताया कि इसका सम्भोधन उन्हें "भविष्य पुराण" में मिला जो हिंदुत्व के 18 पुराणों में से एक हैं और इस प्रकार अग्रवंश को लिखित प्रमाणिकता प्राप्त हुई लेकिन भविष्य पुराण से संचित ज्ञान पर पूर्ण सहमति न बन पाई।
फिर भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की रचना को आधार मानके भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण संस्थान (एएसआई) ने अग्रोहा की खोज प्रारम्भ कि और रचना के हर भाग की प्रमाण सहित पुष्टि कि।
1888-89 में, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने दिल्ली से लगभग 190 किलोमीटर दूर हिसार जिले के अग्रोहा नामक गाँव में 650 एकड़ में फैले टीले की एक श्रृंखला की खोज की।
पुरातत्वविदों ने जो पाया, वह वास्तव में आश्चर्यजनक था। यह था, जैसे कि प्रत्येक उत्खनन के साथ, टीले ने सबूतों की एक ताजा लहर का खुलासा किया कि एग्रोडाका (अग्रोहा का प्राचीन नाम) नामक महान व्यापारिक शहर क्या रहा होगा। खुदाई से एक अच्छी तरह से नियोजित शहर के अस्तित्व का पता चला, जिसमें एक खाई, ऊंची दीवारें और चौड़ी सड़कें थीं। सदियों से, यह एक महान व्यापारिक शहर था, जो सरस्वती नदी के तट पर, तक्षशिला और मथुरा के बीच एक महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग पर स्थित था। ऐ.एस.आई. संस्थान ने ये भी स्वीकार किया कि एग्रोडाका हरप्पन सभ्यता से भी (आज से लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व) पुराना हैं।
इसी खोज के साथ ये सिद्ध हो गया कि अग्रवंश की जड़े 5000 वर्ष से भी अधिक पुरानी हैं।
[ भाग 2 : महाराज अग्रसेनजी ]
भारतेंदु हरिश्चंद्र के वृत्तांत के अनुसार, महाराजा अग्रसेन एक सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा थे, जिनका जन्म महाभारत महाकाव्य काल में द्वापर युग के अंतिम चरणों में हुआ था, वे भगवान कृष्ण के समकालीन थे।
महाराजा अग्रसेन भगवान राम के पुत्र कुश के 34 वीं पीढ़ी के हैं। 15 वर्ष की आयु में अग्रसेन जी ने पांडवों के पक्ष से महाभारत युद्ध लड़ा था। भगवान कृष्ण ने टिप्पणी की है कि अग्रसेनजी कलयुग में एक युह पुरुष और अवतार होंगे जो जल्द ही द्वापर युग के अंत के बाद आने वाले हैं।
महाराजा अग्रसेन व्यापारियों के शहर अग्रोहा के एक महान भारतीय राजा (महाराजा) थे। महाराजा अग्रसेन का जन्म क्षत्रिय था, लेकिन बाद में उन्होंने अपने प्रजा की भलाई और समृद्धि के लिए वैश्य वर्ण को अपना लिया।
वह "एक ईंट और एक सिक्के" की अपनी प्रसिद्ध नीति के कारण भी प्रसिद्ध है। ऐसा कहा जाता है कि जो कोई नागरिक होने के लिए उनके राज्य में आता था, उसे हर दूसरे निवासी द्वारा 1 ईंट और 1 सिक्का दिया जाता था। इस प्रकार एकत्रित धन से वे एक नया व्यवसाय स्थापित करने के लिए सक्षम हो जाता था (इस प्रकार उसकी आय सुनिश्चित हो जाती थी) और ईंटें उसे अपना घर बनाने में मदद करती थी।
इस परंपरा और इसके जैसी अनेक नीतियों ने अग्रवालों में आपसी सामंजस्य इस्थापित किया जिससे वो व्यवसाय में फले फूले और देश के सर्वश्रेष्ठ व्यापारियों में उनकी गिनती होने लगी।
महाराजा अग्रसेन के गोत्रो को लेकर अनेकों कथाये प्रचलित हैं और हर वर्ग की अपनी अपनी मान्यताएं हैं लेकिन अगर भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की रचना को पढ़ा जाए तो पता चलता हैं कि अग्रवाल साढ़े सत्रह गोत्रों (बहिर्मुखी कुलों) में विभाजित हैं, जो अग्रसेन द्वारा किए गए सत्रह आहुतियों से अस्तित्व में आए। अंतिम बलिदान को "आधा" माना जाता है क्योंकि अग्रसेन द्वारा हिंसक पशु बलि के लिए पश्चाताप व्यक्त करने के बाद इसे छोड़ दिया गया था। भारतेंदु ने यह भी उल्लेख किया है कि अग्रसेन की 17 रानियां और एक कनिष्ठ रानी थीं, लेकिन इन रानियों और गोत्रों के गठन के बीच किसी भी संबंध का उल्लेख नहीं है।
एक अन्य लोकप्रिय किंवदंती का दावा है कि गोयल गोत्र के एक लड़के और लड़की ने गलती से एक-दूसरे से शादी कर ली, जिसके कारण एक नया "आधा" गोत्र बन गया।
ऐतिहासिक रूप से, इन साढ़े सत्रह गोत्रों की संख्या और नामों के संबंध में कोई एकमतता नहीं है, और गोत्रों की सूची में क्षेत्रीय अंतर हैं। अग्रवाल के एक प्रमुख संगठन, अखिल भारतीय अग्रवाल सम्मेलन, ने मानकीकरण की एक मानकीकृत सूची बनाई है, जिसे संगठन के 1983 के अधिवेशन में एक वोट द्वारा आधिकारिक सूची के रूप में अपनाया गया था। क्योंकि किसी विशेष गोत्र के वर्गीकरण को "आधा" अपमानजनक माना जाता है, सम्मेलन में 18 गोत्रों की सूची दी गई है: गर्ग , गोयल , कुच्छल, कंसल, बिंदल, धरान, सिंघल, जिंदल, मित्तल, तिंगल , तायल , बंसल , भंडल ,नांगल , मंगल , ऐरन, मधुकुल और गोयंन
[ भाग 3 : आधुनिक अग्रवाल समाज ]
भारत में कुल अग्रवाल ( आबादी लगभग 25-30 मिलियन है, जो उन्हें भारतीय आबादी का लगभग 1.5% बनाती है।
अग्रवाल समुदाय के सदस्य अपने व्यावसायिक कौशल के लिए जाने जाते हैं और कई वर्षों से भारत में प्रभावशाली और समृद्ध रहे हैं।
वर्ष 2016 में, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ऑफ़ इंडिया में सूचीबद्ध कंपनियों के निदेशकों का सबसे आम उपनाम अग्रवाल एवं गोत्र थे। दूसरा सबसे सामान्य उपनाम गुप्ता था।
यहां तक कि आधुनिक तकनीक और ई-कॉमर्स कंपनियों में भी उनका दबदबा कायम है।
वर्ष 2013 में यह बताया गया था कि भारत में हर 100 में से 40 ई-कॉमर्स कंपनियों ने फंडिंग के लिये एक अग्रवाल द्वारा स्थापित फर्मों से ही निवेदन किया हैं।
वर्ष 2022 में भारत के कुल 5 स्टार्टअप्स ऐसे है जो $ 10 बिलियन वैल्यूएशन को पार कर चुके हैं, जिसमें Flipkart की स्थापना एक अग्रवाल ने ही की हैं।
अग्र इतिहास गर्व करने योग्य हैं लेकिन उससे भी अधिक महत्वपूर्ण हैं अग्र गुणों को अपनाना जो आपसी सद्भाव बढ़ाकर व्यवसाय फैलाना हैं , किसी भी देश की अर्थव्यवश्ता में व्यवसाय वर्ग उसकी रीड़ की हड्डी होता हैं और महामारी के बाद आनेवाला समय में रीड़ की हड्डी पर अधिक बोझ आने की आशंका थी, लेकिन हम आपसी सद्भाव से हर कष्ट से पार पाने में सक्षम रहे|
"बोलो श्री अग्रसेन महाराज की जय"
लेखक - युगल अग्रवाल (मंगल)