Thodi Lambi Shayaris
(All of the content on this page are my originals only and sorted in chronological order with New first)
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कब तक ?
कब तक इस चाँद के नूर के बहाने
तेरे होने का ज़िक्र करू?
कब तक ये बारिश वाली मिट्टी की खुश्बू में
तेरी महक महसूस करू?
कब तक ये गरजते ठंडे-ठंडे बादलों में
तेरा चुलबुला शोर सुना करू?
तारे, फूल, झरने, नदिया, समुन्दर, धुप, बारिश, बहार, जादू,
तितली बस अब खत्म हों रहे हैं रूपक अलंकार मुझपे
कब तक तुम्हे लिखने को,
तुम्हे कही और ढूंढा करू?
साथ दे सकते हैं पर साथ रह सकते नहीं
उसे समझ नहीं आती मेरी शायरी,
और हम सीधे-सीधे कह सकते नहीं
वो हस के कहती हैं मुझसे हर दफा
'मैं भूल गयी', क्यूँ तुम भूल सकते नहीं?
एक नाव मैं बैठा हूँ उसके साथ
मगर दूसरे छोर पर,
साथ दे सकते हैं पर साथ रह सकते नहीं !
मंज़ूर हैं ये सफर भी
कमसे कम तेरा एहसास तो हैं,
बता सकते नहीं, जता सकते नहीं
कोई बात नहीं, मगर प्यार तो हैं !
तू नहीं तो हम तो हैं ही
तू नहीं तो हम तो हैं ही,
जो हम हैं तो तू तो हैं ही!
तेरी आँखों में खोने को
तेरा होना ज़रूरी थोड़ी
दिखे न दिखे तस्वीरों मैं,
मेरी आँखों मैं तू तो हैं ही!
तू नहीं तो हम तो हैं ही,
जो हम हैं तो तू तो हैं ही!
इज़हार
इज़हार क्र नहीं सकते मगर प्यार हैं,
क्या बात होती जो तू कहती 'तू तैयार हैं',
हर पल तेरी याद में बीतें मैं भूल गया गिन
अच्छा नहीं कहना तेरा 'जीलो मेरे बिन'
चाँद भी सोता हैं, तारें भी सो जाते हैं
कम्भख्त तेरे ख्वाब लेकिन
मेरी नींद में आतें हैं, मुझको जगा जाते हैं
इज़हार कर नहीं सकते मगर प्यार हैं,
घड़ी पहनता हूँ अब, तेरा इंतज़ार हैं
क्या बात होती जो तू कहती 'तू तैयार हैं',
काट देते सब गांठे मुश्किलों की
तेरे इश्क़ की तलवार मैं इतनी तो धार हैं!
मेरी गुलाब बनोगी
क्या याद हैं आज भी
वो बेमौसम गुलाब तुम्हे
जो बस यूँ ही दे दिया था मैंने
कोई दिन नहीं था फरवरी का
कोई इल्म नहीं था हड़बड़ी का
वो ठहर के कपकपाते होठों से
जो बस यूँ ही कह दिया था मैंने
"हाँ तुम फूल हो,
क्या मेरी गुलाब बनोगी?"
बस मेँ लिखता जाऊ तू पढ़ती जाए
कहती हैं वो अक्सर मुझसे
"तुम्हारी कविताओं के अंत में स्वाद नहीं"
न करती हैं rhyme सही,
न अर्ध (,) या पूर्ण (।) विराम कही,
शुरुवात इतनी जब करते हों प्यारी
तो अंत पे हैं क्यूँ ध्यान नहीं
भोली हैं! डर को नहीं समझती मेरे
जो लिख दिया खूबसूरत अंत कही
तो प्यारी शुरुवात भूल न जाए
कभी अंत नहीं करनी तेरी कविता
बस मेँ लिखता जाऊ तू पढ़ती जाए !
लेहेंगा
न डाल पागल ये लेहेंगा चोली
तू दूर देश की लगती हैं
आग न बन सर्दी की तू वो
भीड़ चारो तरफ जिसके लगती हैं
मैं अभी विदेशी हूँ मुझे
नागरिकता तो लेने दे
फिर पहन के लेहेंगा देखना शीशा
मेरी लगाई बिंदी कैसी लगती हैं?
ज़ुल्फ़ों
तेरी आँखों पे लटकी ज़ुल्फ़ों से
तेरी ही उंगलिया क्यूँ खेल रही हैं?
चेहरे पे आयी ये मुस्कराहट को
हल्के हाथों से पीछे क्यूँ धकेल रही हैं?
बता दो अपने हाथों की उँगलियों को
कर दो आगाह या दो डांट उन्हें
जो मेरे नाम की अंगूठी पहने बगैर
तेरी ज़ुल्फ़ों की गलियों मेँ घूम रही हैं !
आलसी आशिक
डांका डालने से पहले
होती हैं लम्बी रैकी,
दो नोट चुराने कोई
रात का इंतज़ार नहीं करता
क्या गिनने तुमने तारों को
नींद हैं अपनी फैंकी?
धत आलसी आशिक कहते
"हमें कोई प्यार नहीं करता"
चल कोई बात नहीं
यूँ तो है कहानी में किरदार कई
गर तेरी वाली किसी में भी बात नहीं
यूँ तो हर शाम के बाद आती रात नई
गर तेरी खुश्बू के तारे अब हाथ नहीं
यूँ तो हसी ठिठोली दोस्तों से रोज़ नई
गर तेरी वाली मुस्कान अब साथ नहीं
ज़िन्दगी है कभी दुःख तो कभी ख़ुशी नई
क्या कहे सिवाए "चल कोई बात नहीं" !
ये तुम्हारे ख़ारेपन की बेचैनी हैं
ये तुम्हारे ख़ारेपन की बेचैनी है,
तुम बेवजह उनके चाँद को कोसते हो
ये लेहरे तुम्हारी बोखलाहट है,
सबब उनके गुरुत्वाकर्षण को सोचते हो
ये जो जमावड़े लगे हैं न
दर्शको के तुम्हारे किनारे
तुम्हारी लेहरे देखने आये है
तुम अपने अथाह को गुरूर समझते हो
थोड़ा सब्र करो न तुम
नदी पे बाँध बना के तुम
बिजली बनाना चाहते हो दोस्त?
ये मन के खेल में तुम
गणित समझाना चाहते हो दोस्त?
थोड़ा सब्र करो न तुम
नदी को समुन्दर तक आने दो दोस्त
पास कि रेत पर गणित हल करेंगे!
ऐ दिल कहाँ जा रहे हो?
पूर्णिमा का चाँद है आज,
तुम ये झालर लगा रहे हो
आसमान को देखने के दिन हैं तुम्हारे,
तुम ये नज़रे झुका रहे हो
वो शायद वाले कल के लिए
तुम ये आज गवा रहे हो
ठहर के पुछा हैं खुदसे कभी:
ऐ दिल ! कहाँ जा रहे हो?
साहित्य तेरा मेरा
एक रात हो, मैं एक कविता करू
एक सुबह हो, मैं एक छंद पढ़ू
एक शाम हों, मैं एक शेर करू
एक रात हों, मैं एक श्लोक जपु
ऐ समझ न यारा, तू एक हैं
कितनी दफा तुझे लिखने को
हर बार कुछ नया करू
बदलके हर दफा सिर्फ व्याकरण
क्यूँ साहित्य तेरा मेरा मैं बार-बार करू!
दोनों साथ थे
इश्क़ के समुन्दर में हम कूदे तो दोनों साथ थे,
तुम भीग के निकल गयी, हम डूबे के रुके रहे।
रेत के टीले बनाये हमने तो दोनों साथ थे,
तुम धुल सुन चली गयी, हम रेत में धसे रहे।
खैर इन बातों को हम करते तो साथ थे,
तुम बिन सुने निकल गयी, हम शायरी करते रहे।