Honestly, I don't remember or have the realization of when did I actually started writing poems. I have lost many of my diaries where I used to write the poems, and I am not good in remembering them. But I have a name for my first official Hindi Poem that I wrote and even recited (for first time ever) in 2014, when i was in 9th Standard at my school.
The poem was on the theme of 'women empowerment', I received 1st Prize for this with lots & lots of appreciation which might be the reason that motivated me to keep writing. Though I don't write much honestly. Here is my poem with the title:
"समाज में आई आंधी है"
समाज में आई आँधी है,
जननी बनी मर्दानी है,
कोमल कोमल हाथो को अब - चूल्हा नहीं,
अपनी किस्मत सुलगानी है|
कलम होगी हाथ में,
पुस्तक साथ में,
मन आत्मविश्वास में,
बुलंदी आवाज में,
तभी बनेगी बात ये|
समाज में आई आँधी है,
जननी बनी मर्दानी है|
अलबेली माया देखो इस अंधे समाज की,
रोक कर विकास हमारा,
ले लेता रीति का सहारा,
सोचता हूँ कभी -
"क्या रीति ने ही खाया है भविष्य का उजियारा?"
याद दिलाकर पाठ उसे,
रीति की समाज का,
कहता है ये समाज हमारा,
जीवन जीने का हक है सिर्फ पृथ्वीराज का|
कहने को तो देश हमारा,
बन रा विकसित सितारा,
किस बात का ये सितारा -
जिसमें नहीं है जरा भी उजियारा?
समाज में आई आँधी है,
जननी बनी मर्दानी है|
बदलाव देखकर दंग हुए सब,
हुआ है सोच का विकार अब,
टिप टिप टिप टिप बनते सपने,
मिल रहे है नदियों में,
बाँध बना है अगर कोई,
तो हट जाएगा शोर से,
मिलकर ही रहेगी अब,
नदी ये समुद्र की डोर से|
नहीं आएगा मसीहा कोई,
सोच बदलने समाज की
बदलेगी जब सोच हमारी,
जीतेगी फिर भारतीय नारी।
समाज में आई आंधी है,
जननी बनी मर्दानी है|
लेखक - युगल अग्रवाल